Sunday 13 April 2014

आखरी पन्ना..


ट्रैन 5 मिनट छूटने वाली थी. अमन हमेशा की तरह टाइम  पे स्टेशन पे पहुँच गया था और अपने सीट पे बैठ गया था. 24 घंटे की journey थी Bangalore से Bhubaneswar. अमन वहाँ office के ट्रेनिंग के काम पे गया था. 2 हफ्ते कैसे गुजरे पता ही नहीं चला. Bangalore घूमने का प्लान भी बनाया था आखरी कुछ दिनो में, पर अब उसका भी टाइम  नहीं हे. Bhubaneswar ऑफिस में join करना है जल्द से जल्द. हमेशा की तरह उस ने कुछ बिस्कुइट्स और फ्रूट्स खरीद लिया है. ट्रैन का un-hygienic खाना नहीं खाना है पुरे सफर में. निचले बर्थ में उसका रिजर्वेशन हे. बस एक रात की बात है. वैसे भी ट्रैन जर्नी बहुत बोरिंग लगती है उसको. और upper berth में सो भी नहीं सकता. पता नहीं किसका हो वहाँ रिजर्वेशन. आज ट्रैन में भीड़ कुछ कम लग रही है.

अमन अपने mp3 player में गाने सुन ने लगा. थका हुआ था. इस लिए आँख बंद करके थोड़ी झपकी भी ले ली. तभी अचानक एक लड़की बड़ा सा trolly bag लेके आई. उस से वह भारी बैग मुश्किल से खिंचा जा रहा था. जैसे तैसे उसने अपना बैग सीट के निचे डाल के बैठ गयी. अमन की आँखें अचानक खुली. उसको यकीन ही नहीं हुआ की वह निशा थी. पुरे 4 साल बाद मिल रहे थे दोनों. निशा ने भी शायद पहचान लिया था उसको.

दोनों ने ग्रेजुएशन साथ में  किया था. एक ही क्लास में थे, पर कभी बात नहीं हुई, न दोस्ती . उसकी एक वजह ये भी थी, की अमन के दिल में निशा के लिए feelings थी हमेशा. पर कभी बता नहीं पाया. ये बात शायद उसके अलावा और किसीको नहीं पता थी. कॉलेज के वह दिन फिर से सामने आने लगे. Graduation के आखरी दिन, अमन के रोने की वजह एक यह भी थी की वो अपनी दिल की बात नहीं कह पाया कभी उसे. अब उसको पूरी ज़िन्दगी इसी अफ़सोस के साथ जीना था.

" निशा आज भी वैसे ही दिखती है. बिलकुल नहीं बदली. आज भी वही सादगी और मासूमियत. श्रृंगार के नाम पे बस एक काली बिंदी और दो छोटे से झुमके वाले ear-rings. बस बाल थोड़े लम्बे रखती है आज कल. कॉलेज में तो बहुत छोटे बाल थे. बिलकुल गुड़िया जैसी लगती थी. अब थोड़ी मोटी भी  हो गयी है. पर में भी तो बदल गया हूँ. दाढ़ी बढ़ा लिया है. क्या मुझे वह पहचानती भी है. काश आज ट्रिम करके आता.शायद पहचान लेती. कॉलेज में तो कभी देखती भी नहीं थी मेरी तरफ."- नजाने ऐसे कितनी बातें सोचने लगा था अमन.

2 घंटे इसी सोच में गुजर गए, और पता भी नहीं चला. निशा ऐसे बैठी है जैसे पेहेचान ही नहीं पायी हो अमन को. अपने हाथ में Dan Brown की किताब लेके पढ़ने में busy है. अमन ने अपनी ज़िन्दगी में कभी नहीं सोचा था की फिर मुलाकात होगी और वह भी इस तरह. शायद आज मौका मिला है अपने दिल की बात कहने को. पर कहे भी तो कैसे. कॉलेज में  पुरे 4 साल में नहीं कह पाया. आज भी उसकी हिम्मत में कुछ इजाफा नहीं हुआ है. "कम से कम बात तो कर ही सकता हूँ. शायद वह मुझे पेहेचान ले."- ये सोच के अमन ने थोड़ी हिम्मत दिखाई.

अमन: Hi..
(निशा शायद सुन नहीं पायी.)
अमन: Hi, निशा.
(निशा ने अपने ऊपर से किताब का पर्दा हटाया.)
निशा: Hi.. You are अमन, Right? मुझे लगा था तुम ही हो. पर तुम इतने बदल गए हो की I thought कोई और होगा.
अमन: Ohh, It’s OK.. तुमने आखिर में पहचान तो लिया.
निशा: Ohh, C’mon. में नहीं भूलती. वैसे 4 साल हो गए हैं न? क्या दिन थे वह कॉलेज के.
अमन: हाँ. I miss those days too.
निशा: तुम तो बस पढाई में ही busy रहते थे. एक क्लास भी बंक नहीं करते थे. Mass-bunk में भी तुम कॉलेज जाते थे. पूरे पढ़ाकू.
अमन: इतना भी नहीं था जितना लोग बोलते थे. मुझे कॉलेज जाना पसंद था. सारे दोस्त वहीँ पे थे.
निशा: और बताओ. कहाँ हो अभी? और क्या चल रहा है लाइफ में?
अमन: अभी तो वहीँ हूँ. TCS में. ट्रेनिंग के सिलसिले में आया था Bangalore 2 हफ्ते के लिए. अब जा रहा हूँ. तुम ??
निशा: मेने TCS छोड़ दिया और MBA करके अभी Axis बैंक में हूँ. अभी तो फिलहाल छूटी में जा रही हूँ घर.
अमन: Wow. That’s good.

(ऐसे ही बात करते करते रात होने को आया. निशा का upper berth था.)

अमन: तुम चाहो तो निचे वाले berth में सो सकती हो. वैसे भी तुम्हारा बैग निचे है. में ऊपर सो जाता हूँ.
निशा: Ohh. That’s so nice of you. Thanks. तुम dinner नहीं करोगे क्या?
अमन: नहीं में train का खाना खाता नहीं हूँ. I have some biscuits and fruits.
निशा: यह भी कोई dinner खाना हुआ? I have parathaas. Actually roomy नै कुछ ज्यादा ही दे दिया है. We can share.
अमन: (शर्माते हुए ) नहीं नहीं.. It’s fine. मेरी तो आदत ही है ऐसा dinner करने की.
निशा: तो फिर बदलो ये आदत. Let me guess. तुम्हे खाना पकाना आता नहीं होगा. राइट?
अमन: बिलकुल.. मुझे Maggie बनाना आता हैं. और चाय और कॉफ़ी भी बना लेता हूँ.
(निशा हसने लगी.)
निशा: मेने ऐसे ही नहीं guess किया. मुझे याद है  कॉलेज में तुमने कभी कहा था की तुम्हे खाना पकाना नहीं आता. शायद truth and dare game मैं.
अमन: ओह्.. तुम्हे अभी भी याद है?
निशा: Like I said, मैं नहीं भूलती. But I must say, Nice improvement. In 4 years you have learnt how to prepare Maggie, tea and coffee. Good.
अमन: तुम अब भी Novels पढ़ती हो? में तो इतनी मोटी किताब देख के ही डर जाता हूँ.
निशा: मुझे बहुत पसन्द हे पढ़ना. कुछ कहानी के किरदार दिलचस्प होते हैं और कुछ  कहानी का अंत.
अमन: Ohh, interesting. पर किस टाइप की कहानी ज्यादा पसंद हे तुमको?
निशा: कभी कभी किसी किताब के आखरी पन्ने में पता चलता हे, की पूरी कहानी क्या है. I love those kind of stories and novels.
अमन: वाह, क्या बात कही है!!

(डिनर के बाद दोनों अपनी अपनी berth में सोने चले गए )

अमन को रात भर नींद कहाँ आने वाली थी. उसने कभी सोचा भी नहीं था की इतनी सारी बातें कभी वह कर पायेगा निशा से. काश वह इतनी हिम्मत कर लेता कॉलेज में  तो कम से कम तब दोस्ती कर पाता. अब तो ये 24 घंटे की journey जो उसे कभी लम्बी लगी थी, अब उसे काम लग रही है. फिर पता नहीं मुलाकात हो भी के नहीं. अमन के दिल में अब भी कहीं किसी कोने में वह प्यार है. पर कह नहीं सकता. उसने रात भर हिम्मत करके अपने दिल की बात एक कागज़ पे लिख दिया.
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Hi, निशा. 
Please.. मुझे गलत मत समझना. में हमेशा से तुमसे एक बात कहना चाहता था. पर कभी हिम्मत नहीं हुई. आज इतने सालों बाद मुझे नहीं लगता की हमारा मिलना कोई इत्तेफ़ाक़ है. में कॉलेज से ही तुमसे प्यार करता हूँ. पर कभी बोल नहीं पाया. पहले तो सोचा की वह  बचपना था मेरा. पर सच कहूँ तो कहीं किसी कोने में पता था, की मेरा दिल सही था. 4 साल से इसी अफ़सोस के साथ रहा हूँ की तुमसे ये बात नहीं कह पाया. आज सुकून मिला है. ये ज़रूरी नहीं की तुम भी मुझे पसंद करो. शायद तुम मुझे ठीक से जानती भी नहीं. और अपना  जीवन साथी चुनने का तुम्हे पूरा हक़ है. तुम बहुत अच्छी लड़की हो. में  दुआ करूँगा की तुम ज़िन्दगी में वह सब मुकाम हासिल करो जो तुम चाहती हो. सादगी एक ऐसी चीज़ होती है जो किसी किसी को ही मिलती है. बहुत कम होते हैं जो इसको समझ पाते हैं. तुममे आज भी वह सादगी है जो पहले थी. इसे यूँ ही बरकरार रखना और कभी मत बदलना अपने आप को.


और एक बात.. मुझे खाना पकाना आता है, अच्छी तरह से. वह तो मेने ऐसे ही मजाक में मान लिया के नहीं आता, क्यों की तब तुम हस रही थी.
~ अमन ~
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अमन ने अपना कांटेक्ट नंबर नहीं लिखा उसमे. बस दिल की बात ही तो कहनी थी. अब जवाब सुनने की हिम्मत कहा थी उसको? उस कागज़ का अब  करना क्या है, वो भी नहीं सोचा था.

(अगले दिन सुबह ट्रैन Brahmapur पहुँच चुकी थी. 5 मिनट का हॉल्ट था वहां पे.)

निशा: मेरा स्टेशन आ गया. Could you help me with my luggage, please?
अमन: Off course.

अमन को इसी पल से डर था. फिर आज वह वही मुक़ाम पे खड़ा है जहाँ 4 साल पहले था. और आज भी वह हिम्मत नहीं है बोलने की. पर इस मुलाकात को वह ऐसे बे-मायने नहीं होने दे सकता. उसे कोई परवाह नहीं निशा का जवाब क्या होगा अब. पर बाकि ज़िन्दगी वह अपने आपसे ये पूछ के नहीं जी सकता की एक बार उस ने हिम्मत क्यों नहीं की. ट्रैन छूटने से पहले अमन ने निशा को उसका ट्राली बैग थमाते हुए कहा- "तुमसे मिलके अच्छा लगा.". निशा का बस एक ही जवाब था- "मुझे भी.".

ट्रैन Brahmapur स्टेशन छोड़ चुकी थी. 3 घंटे बाद Bhubaneswar स्टेशन आ जायेगा. पर इस बार अमन के चेहरे पे अफसोश या ग़म नहीं था, बल्कि एक सुकून था. उसने हिम्मत करके वह कागज़ निशा के ट्रॉली बैग के ऊपर वाली चैन के अंदर डाल दिया था.


अपने seat पे लौट के अमन पुरे रास्ते वही मुलाकात के बारे में सोचने लगा. Bhubaneswar स्टेशन पे ट्रैन पहुँच चुकी थी. अमन अपने हैंड बैग उठा के निकल ही रहा था की उसको अपना बैग थोड़ा हैवी लगा. ट्रैन से उत्तर के वह देखता है की उसके बैग में वही Dan Brown की किताब है जो निशा पढ़ रही थी. उस ने सोचा - "गलती से अपनी किताब भूल गयी. अब में इसको कैसे लौटाऊँ?? पर गलती से छूट गया होता तो मेरे बैग में क्यों डालती?". अमन बैग लेके ऑटो स्टैंड की तरफ बढ़ने लगा. कुछ वक़्त पहले जहाँ उसके दिल में एक सुकून था. अब वह समझ नहीं पा रहा है उस किताब का क्या करे. स्टेशन से घर तक का रास्ता अभी वही सवाल के साथ तय करना था.


रात को अंगड़ाइयां लेते हुए अमन ने वह मुलाक़ात का एक एक लम्हा याद किया . तकिये के पास Dan Brown की वही किताब को देखते हुए उसने सोचा -
 "वक़्त भी अजीब होता है. जब हम चाहते हैं की ये थम जाए, ये और तेज भागता है. बाद में वही पल यादों के सहारे आतें हैं, अकेले सोच पे अपनी दस्तक देते हैं. ज़िन्दगी भी किताब की तरह है. कुछ बड़ी, कुछ छोटी. सब अपने अपने हिस्से के पन्नो के साथ. हर किताब में कई चैप्टर्स. जैसे ज़िन्दगी के आखरी पड़ाव पे कोई अफसोश नहीं रहना चाहिए, वैसे ही किताब के आखरी पन्ने पे कोई कहानी अधूरी नहीं छूटनी चाहिए. तब बनती है एक perfect कहानी."

अचानक अमन को कुछ याद आया..
उसने लाइट्स ओन किया और वह किताब पर झपटा, जैसे कोई बच्चा झपटता हे नए खिलोनो पे. निशा ने एक बात कही थी, जो उस को याद आ गयी थी - "कभी कभी किसी किताब के आखरी पन्ने में पता चलता हे, की पूरी कहानी क्या है." आखरी पन्ना खोला तो उसे यकीन नहीं हुआ. वहां  निशा ने कुछ लिखा था-


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Hi.. 
तुमसे मिलके अच्छा लगा. कॉलेज की कुछ यादें ताज़ा हो गयी. उन यादों में एक बात ऐसी भी थी जो मेने अपने जेहेन में कहीं छुपा के रख्खी थी. काश हम दोस्त हो पाते उस वक़्त, तो हिम्मत कर के कह देती. एक लड़की चाहे कैसी भी हो, कभी न कभी वो अपने दिमाग में अपने जीवन साथी की एक तस्वीर बना के रखती है. मेरी thinking बहुत ही simple हैं. में अपने जीवन साथी में कुछ खूबी ढूंढ़ती हूँ जो मुझे तुम में नज़र आती है. आज इतने सालों बाद भी तुम वही सख्स हो, जानके अच्छा लगा. वैसे कॉलेज में तुम इतने ठीक नहीं दीखते थे, जैसे अब दीखते हो. बस अपनी दाढ़ी थोड़ी ट्रिम किया करो.

और एक बात. मेरे घर में शादी के लिए लड़का ढूंढ़ना शुरू कर दिए हैं. अगर तुम्हारे दिल में भी मेरे लिए वही फीलिंग्स हे, तो में अपना नंबर दे रही हूँ. अगर नहीं हे, तो दोस्त बन के तो रह ही सकते हैं.
~ निशा ~
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