Friday 19 June 2015

हमनवाई...


क्यों पलों को समेटे बैठे हो, चलो नए लम्हे बटोर ते हैं।
बीते हुए उन लम्हों की मद्होशी अच्छी नहीं।


वक़्त बहुत तेज बदलता है, तुम और तेज भागना सीखो।
रुके हुए बेवफा वक़्त से दिल्लगी अच्छी नहीं।


गर थक गए, तो रुकना नहीं; कहीं रुके भी, तो मुड़ना नहीं।
रूठे हुए उन आवाज़ों की ख़ामोशी अच्छी नहीं।


कुछ मोड़ तुमसे छूट गये, तो अफ़सोश क्यों करते हो?
रास्तों से प्यार करो, इन से जुदाई अच्छी नहीं।


लोग वक़्त की तरह हैं, बदलना उनकी फितरत है।
अपने दिल की सुनो, दिल से यूँ बेरुखी अच्छी नहीं।


आंशु कि तरह बनो, आँखों में आये तो सब साफ़ दिखाई दे।
अंधो की इस दुनिया में, प्यार की अगवाई अच्छी नहीं।


तुम खुद अपने दोस्त बनो, हमदर्द भी और हमराज़ भी।
ज़मीर से मुर्दा लोगों से हमनवाई अच्छी नहीं।


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